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The Haryana Story | सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर सीएम नायब सैनी ने दिया अंशदान, जानें इस दिन के बारे में कुछ ख़ास बातें

सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर सीएम नायब सैनी ने दिया अंशदान, जानें इस दिन के बारे में कुछ ख़ास बातें

मुख्यमंत्री ने सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में दिया योगदान और प्रदेशवासियों से कोष में योगदान देने का किया आह्वान

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत हर साल सेना, नौसेना और वायु सेना के वीर सदस्यों और शहीदों को सम्मानित करने के लिए सशस्त्र सेना झंडा दिवस मनाता है। यह दिन देश की शांति, स्वतंत्रता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए उनके बलिदान और अटूट समर्पण का सम्मान करता है। 

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने सशस्त्र सेना झंडा दिवस के अवसर पर जल, थल और नभ के शूरवीरों को नमन करते हुए कहा कि सैनिक विपरीत परिस्थितियों में अपने पराक्रम से देश की सीमाओं को सुरक्षित रखते हैं। हम सभी देश पर प्राण न्योछावर करने वाले पराक्रमी योद्धाओं के प्रति कृतज्ञ हैं। मुख्यमंत्री ने आज यहां अपने निवास स्थान संत कबीर कुटीर पर सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में ऑनलाइन अंशदान दिया।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में उदारता व स्वेच्छा से योगदान दें

मुख्यमंत्री ने सभी प्रदेशवासियों से आह्वान किया कि वे सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में उदारता व स्वेच्छा से योगदान दें, ताकि इस योगदान से देश सेवा करते हुए शहीद हुए सैनिकों या शारीरिक रूप से अशक्त हो जाने वाले बहादुर सैनिकों के आश्रितों के पुनर्वास और कल्याण में सहयोग हो सके। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा कि सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर अंशदान देकर उन्हें गर्व की अनुभूति हुई है। हरियाणा सरकार पूर्व सैनिकों, शहीदों के आश्रितों के कल्याण के प्रति वचनबद्ध है व उनके उत्थान के लिए प्रयासरत है। इस अवसर पर सैनिक एवं अर्धसैनिक कल्याण विभाग के वरिष्ठ भी मौजूद थे। 

सशस्त्र सेनाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एक दिन रखा गया

हमारे सैनिकों, दिग्गजों और भारतीय सशस्त्र बलों के शहीदों की याद में, 7 दिसंबर को हर साल सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है। आमतौर पर देशभर के लोग सेना के जांबाज सैनिकों के लिए हमेशा ही सॉफ्ट कार्नर रखते हैं, उनके मन में सेना के जवानों और उनके परिवार को लेकर हमेशा ही श्रद्धा का भाव रहता है।

सरकार की ओर से देश की सशस्त्र सेनाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एक दिन रखा गया है, इसे हर साल सशस्त्र सेना झंडा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन उन जांबाज सैनिकों के प्रति सभी लोग एकजुटता दिखाते हैं, जिन्होंने देश के दुश्मनों से मुकाबला करते हुए अपनी जान हंसते हुए न्यौछावर कर दी। इन शहीदों और इनके परिवार को इस दिन नमन किया जाता है। सशस्त्र बलों के कर्मियों और उनके परिवारों की भलाई के लिए धन जुटाना इस दिन का एक और पहलू है।

परिवार की मदद के लिए एकत्र की जाती है धनराशि

इस दिन सशस्त्र सेना के शहीद जवानों के परिवार की मदद के लिए धनराशि भी एकत्र की जाती है। यह धनराशि लोगों को गहरे लाल व नीले रंग के झंडे का स्टीकर देकर एकत्रित की जाती है। लोग रुपए देकर इस स्टीकर को खरीदते हैं। यह राशि झंडा दिवस कोष में जमा कराई जाती है। इस कोष से युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवार या घायल सैनिकों के कल्याण व पुनर्वास में सहायता की जाती है। सैनिक कल्याण बोर्ड इस राशि को खर्च करता है।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस का इतिहास

7 दिसंबर, 1949 को सैन्य टुकड़ियों की भलाई को बढ़ावा देने के उपाय के रूप में सशस्त्र सेना झंडा दिवस की स्थापना की गई थी। इस दिन, हमारे सैन्य कर्मियों द्वारा किए गए बलिदानों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और दान को बढ़ावा देने के लिए प्रतीकात्मक झंडे फहराए जाते हैं। इन झंडों को पहनना सम्मान और कृतज्ञता दिखाने का एक सीधा लेकिन हार्दिक तरीका है। रक्षा मंत्री की समिति ने 1949 में सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष बनाया।

1993 में, भारतीय रक्षा मंत्रालय ने युद्ध पीड़ितों, केन्द्रीय सैनिक बोर्ड कोष, पूर्व सैनिकों के कल्याण कोष और अन्य इकाइयों सहित सभी संबंधित कल्याण कोषों को एकीकृत सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष में मिला दिया। भारत में रक्षा मंत्रालय के केंद्रीय सैनिक बोर्ड की स्थानीय शाखाएँ निधि संग्रह की देखरेख करती हैं। प्रबंध समिति इसका प्रभारी है, और आधिकारिक और अनौपचारिक दोनों ही स्वयंसेवी समूह इस पर नज़र रखते हैं।

 

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