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The Haryana Story | फ़रीदाबाद-सूरजकुंड मेले में लोगों को लुभा रही पश्चिम बंगाल की अनूठी 'शोलापीठ-शिल्प' कला

फ़रीदाबाद-सूरजकुंड मेले में लोगों को लुभा रही पश्चिम बंगाल की अनूठी 'शोलापीठ-शिल्प' कला

पश्चिम बंगाल के आशीष मलाका की अनूठी 'शोलापीठ-शिल्प' कला के फैन हुए पर्यटक

प्रतीकात्मक तस्वीर

सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में हर साल तरह-तरह की अनूठी कलाएं देखने को मिलती हैं। इस बार पश्चिम बंगाल के आशीष मलाका अपनी शोलापीठ-शिल्प कला लेकर आए हैं, जो पानी में उगने वाले एक खास सफेद पेड़ की लकड़ी से बनाई जाती है। इस लकड़ी को "शोला" कहा जाता है और इससे दुर्गा माता के चेहरे, छोटी मूर्तियां और शादी के मुकुट तैयार किए जाते हैं। दूधिया रंग की सफेद स्पंज की लकड़ी तालाबों से पानी के अन्दर से निकाली जाती है, जिसको 2 महीने तक सुखाया जाता है। उसके बाद चाकू की मदद से उसको परत दर परत छीला जाता है इसके बाद इसमें रंग भरे जाते है। 

इसमें किसी भी मशीन का उपयोग नहीं होता

आशीष मलाका ने बताया कि यह कला उनके परिवार में पीढ़ियों से चली आ रही है। उनके दादा, पिता और दादी को नेशनल अवार्ड मिल चुका है, वहीं उन्हें खुद भी 1990 में नेशनल अवार्ड और 2008 में शिल्पगुरु अवार्ड से सम्मानित किया गया है। उनका कहना है कि इस लकड़ी को तराशने का काम पूरी तरह हाथों से किया जाता है, इसमें किसी भी मशीन का उपयोग नहीं होता। 

भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रिय

यह कला सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है। आशीष मलाका अब तक 10 से ज्यादा देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं, जहां उनकी कलाकृतियों की अच्छी मांग रहती है। आशीष मलाका हर साल सूरजकुंड मेले में आते हैं और इस बार भी उन्हें 23 फरवरी तक चलने वाले मेले में अच्छी बिक्री की उम्मीद है। उनका कहना है कि इस तरह के मेले कलाकारों को अपनी कला दिखाने और आगे बढ़ाने का अच्छा मौका देते हैं। 

जानें शोलापीठ शिल्प कला के बारे में

शोलापीठ शिल्प, बंगाल और आस-पास के राज्यों में प्रचलित एक पारंपरिक कला रूप है। शोलापीठ को शोला और इंडियन कॉर्क भी कहा जाता है। यह एक सूखा दूधिया-सफ़ेद स्पंजी पौधा पदार्थ है। शोलापीठ से बनी कलाकृतियां, घरेलू सजावट के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। 

शोलापीठ शिल्प से जुड़ी खास बातें

- शोलापीठ, एशिनोमिन प्रजातियों का एक सूखा पौधा पदार्थ है।

- शोलापीठ को दबाकर और आकार देकर कलाकृतियां बनाई जाती हैं।

- शोलापीठ से बनी कलाकृतियां, हिंदू मूर्तियों को सजाने और शादियों में दुल्हन-दूल्हे के हेडगियर बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं।

- शोलापीठ से बनी कलाकृतियां, घरेलू सजावट के लिए भी इस्तेमाल की जाती हैं।

- शोलापीठ, बंगाल, असम, उड़ीसा, और दक्कन के दलदली क्षेत्रों में पाया जाता है।

- शोलापीठ से बनी कलाकृतियां, गिफ़्ट के तौर पर भी दी जाती हैं। 

शोलापीठ शिल्प बनाने का तरीका

तालाबों से पानी के अंदर से दूधिया रंग की सफ़ेद स्पंज की लकड़ी निकाली जाती है। शोलापीथ प्राप्त करने की प्रक्रिया में सबसे पहले तनों को इकट्ठा करना और फिर उन्हें पानी में डुबोना और फिर उन्हें पूरी तरह से सूखने देना है। इसके बाद गहरे भूरे रंग की छाल को तने से छीलकर उसका कोर निकाल लिया जाता है। फिर कोर को शोला चोरकी नामक पट्टियों में काट दिया जाता है।

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