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The Haryana Story | जानें कौन हैं हरियाणा राज्य गीत 'जय जय हरियाणा' को आवाज़ देने वाले कलाकार डॉ.श्याम शर्मा

जानें कौन हैं हरियाणा राज्य गीत 'जय जय हरियाणा' को आवाज़ देने वाले कलाकार डॉ.श्याम शर्मा

प्रदेश में फोक म्यूजिक को अलग पहचान देना का है सपना, पिता को गुरु मान आगे बढ़े श्याम शर्मा..दादा लखमी चंद जैसी हरियाणवी फिल्म के गानों में भी दे चुके है अपनी आवाज

डॉ श्याम शर्मा

बचपन से ही कानों में लोक संगीत की धुनें गूंजती रहीं, और धीरे-धीरे यह सब उनकी रगों में दौड़ने लगा...हरियाणा के राज्य गीत 'जय जय हरियाणा' को अपनी आवाज़ देने वाले डॉ  श्याम शर्मा अपने पिता को अपना पहला गुरु मानते हैं और उन्हीं से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। स्कूल और कॉलेज के दौरान भी वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे। उनकी मेहनत और समर्पण हरियाणवी संगीत को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है। 'जय जय जय हरियाणा' का राज्य गीत के रूप में चयन उनके योगदान की एक बड़ी उपलब्धि है, जो हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने में सहायक होगी। 

इस गीत ने पूरे प्रदेश में गर्व की भावना जगा दी

उल्लेखनीय है कि हरियाणा के सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब 'जय जय जय हरियाणा' को राज्य गीत का दर्जा प्राप्त हुआ और इस ऐतिहासिक गीत को अपनी सुरीली आवाज देने वाले हैं  कैथल जिले के गांव देवबन निवासी डॉ. श्याम शर्मा हैं। उनकी आवाज में गाए इस गीत ने पूरे प्रदेश में गर्व की भावना जगा दी है। गौरतलब है कि हरियाणा गठन के बाद पहली बार प्रदेश का राज्य गीत बनाया गया है।

बचपन से ही उन्हें म्यूजिक का शौक रहा

उनकी मधुर आवाज में गाए गए इस गीत को सभी ने पसंद किया है। वहीं मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने विधानसभा में डा. श्याम शर्मा की मधुर आवाज की प्रशंसा की है। बता दें कि डॉ. श्याम शर्मा का जन्म मशहूर सांगी एवं जिला सूचना एवं जन संपर्क विभाग कैथल से सेवानिवृत बलबीर शर्मा के घर हुआ। पिताजी के नक्शे कदम पर चलते हुए बचपन से ही उन्हें म्यूजिक का शौक रहा है। उनके पिता भजन पार्टी के लीडर थे और अब वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं। 

संगीत के प्रति उनकी गहरी रुचि और मेहनत ने उन्हें पीएचडी करने के लिए भी प्रेरित किया

संगीत की औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए डॉ शर्मा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और वहां म्यूजिक डिपार्टमेंट में रिटायर्ड प्रोफेसर सुरेश गोपाल श्रीखंडे से 2013-2015 के दौरान संगीत की बारीकियां सीखीं। इसके बाद, मुनीष ठाकुर से भी संगीत का तकनीकी ज्ञान प्राप्त किया। इतना ही नहीं संगीत के प्रति उनकी गहरी रुचि और मेहनत ने उन्हें पीएचडी करने के लिए भी प्रेरित किया और यहां पीएचडी में उनकी गाइड प्रोफेसर सूची सुमिता से संगीत के सभी पहलुओं के बारीकी से जानकारी ली। 

मांगेराम की रागनी 'गंगा तेरे खेत में...' गाकर लोकप्रियता हासिल की

डॉ श्याम शर्मा ने वर्ष 2019 में प्रोफेशनल गायकी में कदम रखा और प्रसिद्ध सांगी मांगेराम की रागनी 'गंगा तेरे खेत में...' गाकर लोकप्रियता हासिल की। इसके बाद, हरियाणवी फिल्म 'दादा लख्मी' में दो गानों को अपनी आवाज दी। उन्होंने कलाकार केडी के साथ 'कलयुग' सॉन्ग भी गाया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। इस समय वे कुरूक्षेत्र के राजकीय संस्कृति मॉडल वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में संगीत प्राध्यापक के तौर पर कार्य कर रहे हैं। वह दो भाई तथा दो बहनों में सबसे छोटे हैं। उन्हें संगीत का गुण विरासत में मिला है।

राज्य गीत को आवाज़ देने का कैसे मिला मौका ?

राज्य गीत के गायक डॉ. श्याम शर्मा ने बताया कि इस गीत को गाने के लिए सरकार ने कई म्यूजिक डायरेक्टर से आवेदन मंगवाए थे। उनके म्यूजिक डायरेक्टर मालविका पंडित ने उनकी टीम को यह गाना गाने को दिया। चूंकि मैंने हरियाणवी फिल्म दादा लखमी चंद, गंगा जी, कलयुग सॉंग सहित कई अवसरों पर हरियाणवी गायकी में अपनी प्रस्तुति दी है और इसे लोगों ने ख़ूब पसंद भी किया था। इसलिए उन्हें यह गीत दिया गया।

पहले इस गीत को पूरी तरह से आत्मसात किया, फिर गाया

गीत को समझने, उसके संगीत, उसके भावों व अन्य सभी बातों को समझने में उन्हें काफी समय लगा। कई -कई  बार गाकर देखा, लेकिन जब तक रूह में उतरकर किसी गीत को न गाया जाए, तब तक उसमें वह सफलता नहीं मिल पाती। पहले मैंने इसे पूरी तरह से आत्मसात किया फिर 'जय जय जय हरियाणा' गीत गाया तो सभी को अच्छा लगा। यह बड़ी खुशी की बात है कि मेरा गाया हुआ गीत, हरियाणा के राज्य गीत के तौर पर चयन हुआ है और इसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है। श्याम शर्मा ने कहा जैसे ही मौका मिलेगा तो वे इसे लाइव भी गाएंगे।

डॉ. श्याम शर्मा का सपना हरियाणवी लोक संगीत को पहचान दिलाना

डॉ. श्याम शर्मा का सपना हरियाणवी लोक संगीत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना है। वे चाहते हैं कि जिस तरह पंजाब का फोक म्यूजिक अपनी अलग पहचान बना चुका है, उसी तरह हरियाणवी लोक संगीत को भी विशेष स्थान मिले। इसलिए वे नई पीढ़ी को इस दिशा में शिक्षित करने और प्रेरित करने में जुटे हैं। रत्नावली उत्सव में उन्होंने छह बार भाग लिया और लगातार तीन बार प्रथम स्थान प्राप्त कर अपनी संगीत प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी गायकी से प्रभावित होकर सरकार और प्रशासन उन्हें गीता जयंती और सूरजकुंड मेले जैसे बड़े आयोजनों में विशेष रूप से आमंत्रित करता है।

 

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