
यमुना नदी के अंदर हरियाणा-यूपी सीमा विवाद को लेकर यूपी के किसानों ने पुलिस व हरियाणा के किसानों पर हवाई फायरिंग की और मौके से फरार हो गए।वहीं सनौली खुर्द थाना पुलिस का कहना है कि मामला दर्ज कर ठोस कार्यवाही की जाएगी। जानकारी अनुसार रिसपुर गांव के किसान नरेन्द्र,नीटू,कृष्ण आदि ने बताया कि उन्होंने धान की फसल लगाने के लिए धान की पनीरी तैयार कर रख थी। सोमवार को यमुना पार यूपी के गांव के मवी के दर्जनों किसान अचानक आए और अवैध रूप से कब्जा करने की नीयत से उनके खेतों की जुताई करने लगे इस दौरान उन्होंने धान की पनीरी को भी नष्ट कर दिया।
हवाई फायरिंग कर मौके से फरार हुए आरोपी
इसकी भनक जैसे ही उन्हें मिली तो वो खेत में पहुंचे और इसकी सूचना उन्होंने तुरंत पुलिस को दी। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची तो यूपी के मवी गांव के किसानों ने पुलिस व उनके ऊपर हवाई फायरिंग शुरू कर दी और मौके से फरार हो गए। पीड़ित किसानों ने अवैध रूप से कब्जा करने की नीयत से उनके खेतों की जुताई करने व हवाई फायरिंग करने वाले यूपी के किसानों के खिलाफ ठोस कार्यवाही की मांग की है।
धारा हर बार बदलने के पीछे प्राकृतिक और मानवीय कारण
यमुना की धारा हर बार बदलने के पीछे प्राकृतिक और मानवीय कारण हैं। प्राकृतिक कारण तेज बारिश होने पर यमुना नदी में बाढ़ आना है। पानी का बहाव धारा को बदलता है। ऐसे में यमुना कभी हरियाणा तो कभी उत्तर प्रदेश की तरफ बहती है। दूसरा मानवीय कारण यमुना में खनन है। ठेकेदार पोकलेन मशीन से यमुना से रेत निकालते हैं। बहते पानी में रेत साफ निकलता है।
इसके बाजार में अच्छे रेट मिलते हैं, जबकि सूखी यमुना से मिट्टी के साथ निकली रेत के कम दाम मिलते हैं। इस लिए ठेकेदार कई जगह 10 से 12 फीट तक रेत खनन कर देते हैं, जो कि पानी आने पर कुंड बन जाते हैं। जुलाई, अगस्त और सितंबर में रेत खनन बंद किया जाता है। यमुना में बारिश का पानी आता है तो कुंडों में पानी गिरकर धारा दूसरी तरफ मुड़ जाती है। इससे कच्चे बांधों में कटाव शुरू हो जाता है। यही धारा परिवर्तन किसानों की जमीन का विवाद बनती है।
पहले भी दो दर्जन से अधिक बार हो चुका खूनी संघर्ष, गोलियां चलीं, अफसर तक भी बंधक बनाए गए
सीमा विवाद में यूपी व हरियाणा के किसानों के बीच फसल बुआई व कटाई के समय सबसे ज्यादा संघर्ष होता है। कई बार दोनों प्रदेशों के किसानों के बीच जमकर बवाल हुआ था और उस समय कई लोगों को गोली लगी थी। लेकिन कोई ठोस समाधान अभी तक नहीं हुआ है।
सर्वे ऑफ इंडिया की निशानदेही पर लग रहे पिलर
दोनों राज्यों की सीमाओं को बांटती यमुना में हदबंदी के लिए वर्ष 1974 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री उमाशंकर दीक्षित की ओर से एक बिल का मसौदा तैयार किया गया था। इस पर वर्ष 1975 में दोनों राज्यों को अमल करने के लिए कहा गया, ताकि यमुना और इसके अंदर की जमीन पर खेती बाड़ी को लेकर दोनों राज्यों के किसानों के बीच विवाद न हो। अब पिलर लगाने का काम दीक्षित अवार्ड-1974 को आधार मानकर किया जाएगा। वर्ष 2007 में पहली बार यमुना नदी के किनारे पिलर बने थे, लेकिन वे बह गए।
बताया जा रहा है कि बाद में वर्ष 2021 में करनाल में पायलट प्रोजेक्ट के तहत बने पिलर सफल रहे। अब सर्वे ऑफ इंडिया की निशानदेही पर दीक्षित अवार्ड के तहत नए सिरे से छह जिलों में मजबूत बाउंड्री पिलर बनाने की योजना चल रही है। नए डिजाइन में पिलर की ऊंचाई 21.5 मीटर रखी गई है। इन पिलरों पर नंबर भी अंकित किए जा रहे हैं। पिलर लगाने की प्रक्रिया करनाल जिले में शुरू हो चुकी है। यमुनानगर, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद और पलवल में सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से निशानदेही की जा रही है।
शामलात देह की जमीन पर नहीं मालिकाना हक
यमुना नदी के साथ लगते गांवों का दूसरा बड़ा मुद्दा शामलात देह की जमीन का है। किसानों की जमीन की मलकियत नहीं हो पा रही है। पानीपत के साथ यमुनानगर, करनाल, सोनीपत, फरीदाबाद और पलवल में यह बड़ा मुद्दा है। अकेले पानीपत के 15 गांवों की लगभग 10 हजार एकड़ जमीन है। हर जिले में लगभग इतनी ही जमीन शामलात देह की है।
किसानों का मानना है कि गांवों में जमीन का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा शामलात जमीन है। ऐसे में किसानों को न लोन मिल रहा है और न ही बेचने का अधिकार है। किसानों की तीसरी और चौथी पीढ़ी संघर्ष कर रही है। बाढ़ आने पर भी मुआवजा तक नहीं मिल पाता। 1960 से पहले तामशाबाद, राणा माजरा, पत्थरगढ़ और नवादा पार गांव का यूपी में रिकॉर्ड था। ये गांव बाद में हरियाणा में आ गए थे।
हरियाणा गठन के समय का है मुद्दा : एडवोकेट रतन सिंह
यमुना किनारे की जमीन के मालिकाना हक को लेकर आवाज उठा रहे यमुना सुधार समिति के अध्यक्ष अधिवक्ता रतन सिंह रावल ने बताया कि यमुना नदी के आसपास के किसानों की जमीन के अधिकार और मलकियत के मुद्दे को कई बार प्रशासन के सामने रख चुके हैं। इसे सरकार के प्रतिनिधियों के सामने भी रखा गया। हरियाणा गठन के बाद आज तक मलकियत का मुद्दा बना हुआ है। इसका कोई हल नहीं हो पाया है।
जमीन की मलकियत न होने से किसान केवल खेती करने तक का ही मालिक है। वह इससे आगे कुछ नहीं कर सकता। उसको मुआवजा तक नहीं मिल पाता। किसानों ने गत वर्ष पानीपत में किसान महापंचायत की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में भी इस विषय को रखा था, लेकिन आश्वासन के बाद कोई समाधान नहीं हुआ। वहीं इस विषय में बापौली थाना पुलिस का कहना है कि सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई थी। फायरिंग करने वालों के खिलाफ ठोस कार्यवाही की जाएगी।
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