
लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी गुजरात के बाद अब जल्द ही हरियाणा में भी बड़ा बदलाव करने जा रहे हैं। इस बदलाव में कांग्रेस जाट और दलित राजनीति से अपना पीछा छुड़ा सकती है। सूत्र बताते हैं राहुल गांधी ओबीसी के किसी नेता को प्रदेश की कमान सौंप सकते हैं और विधायक दल का नेता पद गैर जाट को दे सकते हैं। इसके साथ एक दशक बाद प्रदेश के सभी जिलों को अध्यक्ष मिल जाएंगे, लेकिन उससे पहले प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल नेता पद की घोषणा की जाएगी।
कांग्रेस लगातार तीन-तीन विधानसभा का चुनाव हार चुकी
सूत्र बताते हैं कि बदलाव से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गुट को झटका लग सकता है। राहुल गांधी इस बार किसी प्रकार के दबाव में आने के मूड में नहीं है। दरअसल कांग्रेस एक दशक से अधिक समय से हरियाणा में सत्ता में नहीं है। कांग्रेस लगातार तीन-तीन विधानसभा का चुनाव हार चुकी है। इन तीनों चुनाव में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के रूप में जाट नेता हुड्डा को सीएम का फेस बनाया और साथ में दलित फेस को प्रदेश अध्यक्ष के रूप रखा, लेकिन इस तालमेल से पार्टी को नुकसान ही हुआ। जाट नेता हुड्डा का फेस इतना बड़ा बना दिया कि दूसरी जातियां खिलाफ हो गई। राहुल गांधी इस तालमेल को तोड़ अब नए जातीय समीकरण साधने की कोशिश में हैं।
गुटबाजी के चलते पार्टी का संगठन खत्म सा हो गया
2005 में कांग्रेस ने गैर जाट भजनलाल को फेस बना गैर जाट राजनीति कर सत्ता वापस पाई थी, लेकिन जीत के बाद कांग्रेस आलाकमान ने भजनलाल को साइड कर भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बना दिया था। इससे नाराज हो भजनलाल ने कांग्रेस छोड़ दी थी। केंद्र में तब कांग्रेस की सरकार बन चुकी थी। सोनिया गांधी के एक इशारे पर फैसले होते थे। अधिक विधायकों के समर्थन के बाद भी भजनलाल कुछ नहीं कर पाए।
हुड्डा को दिल्ली में कांग्रेस का नेता चुन लिया गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद हुड्डा गांधी परिवार के काफी करीबी हो गए। 2009 में हुड्डा ने समय पूर्व चुनाव करा फिर से सरकार बनाई। हुड्डा भी जाट राजनीति के फेस बन गए। 2014 में मोदी लहर में कांग्रेस चुनाव हार गई, लेकिन हुड्डा कांग्रेस के फेस बने रहे। इससे पार्टी कई गुटों में बंट गई। फिर 2019 में भी कांग्रेस हुड्डा की अगुवाई में सरकार नहीं बना पाई। गुटबाजी के चलते पार्टी का संगठन खत्म सा हो गया।
आपसी झगड़ों और जाट राजनीति से कांग्रेस जीती हुई बाजी हार गई
आलाकमान हुड्डा के कहने पर चला और 2024 में तीसरा चुनाव भी कांग्रेस विधानसभा का हार गई। यह कांग्रेस के लिए तगड़ा झटका था, क्योंकि कांग्रेस अपनी गलतियों से चुनाव हारी। आपसी झगड़ों और जाट राजनीति से कांग्रेस जीती हुई बाजी हार गई। इस हार के बाद भी हुड्डा इसी कोशिश में है कि विधायक दल नेता पद हर हाल में उन्हें मिले, लेकिन आलाकमान इस बार पद देने के मूड में नहीं है। यही वजह है कि चुनाव के 8 माह बाद भी कांग्रेस हरियाणा के लिए नेता प्रतिपक्ष तय नहीं कर पाई। इस बीच महाराष्ट्र और दिल्ली की हार ने आलाकमान को चिंता में डाल दिया। तय हुआ कि कमजोर राज्यों को प्राथमिकता में ले संगठन को निचले स्तर से मजबूत किया जाए।
गुजरात के बाद राहुल गांधी हरियाणा ऑपरेशन में जुट गए, हरियाणा की हालत सबसे ज्यादा खराब
राहुल गांधी ने खुद संगठन को मजबूत करने का बीड़ा उठाया और गुजरात, हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश पर फोकस किया। संगठन सृजन कार्यक्रम के तहत गुजरात में दिल्ली से पर्यवेक्षक भेजे गए और उनके द्वारा चयनित नेताओं को जिले की कमान दे दी गई। गुजरात के 40 जिला अध्यक्षों की सूची दो दिन पहले जारी की गई। गुजरात में प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल नेता पहले ही नियुक्त कर दिए गए थे। गुजरात के बाद राहुल गांधी हरियाणा ऑपरेशन में जुट गए हैं। हरियाणा की हालत सबसे ज्यादा खराब है। प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल नेता चुनने के साथ पूरे प्रदेश में संगठन बनाना है। बीजेपी ने गैर जाट की राजनीति कर लगातार तीन चुनाव जीते हैं। कांग्रेस भी अब इसी फार्मूले पर विचार कर रही है। राहुल जल्द ही नए समीकरणों को साधते हुए नए फेस सामने ला सकते हैं।
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