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The Haryana Story | हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विशेष गेहूं किस्म 'डब्ल्यूएच 1402'

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विशेष गेहूं किस्म 'डब्ल्यूएच 1402'

जलवायु परिवर्तन के साथ कृषि में क्रांति

प्रतिनिधि चित्र

बालियों की नई किस्म का परिचय

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के गेहूं एवं जौ अनुभाग के प्रभारी, डॉ. पवन, ने बताया कि हाल ही में विकसित की गई गेहूं की नई किस्म 'डब्ल्यूएच 1402' ने आपके खेतों में एक नई क्रांति का संकेत दिया है। इस किस्म की खासियत यह है कि वह 100 दिनों में बालियां निकालती है और 147 दिनों में पूरी तरह पूरी हो जाती है। इसमें लंबी (14 सेंटीमीटर) बालियां होती हैं जो लाल रंग की होती हैं।

उनिक बिजाई की खासियत

इस नई किस्म का नाम 'डब्ल्यूएच 1402' है और इसे खासकर रेतीले, कम उपजाऊ, और कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है। दिन-प्रतिदिन भू-जल की कमी के कारण, यह किस्म विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होगी जो सीमित पानी उपलब्ध क्षेत्रों में खेती करते हैं।

किसानों को लाभ

डॉ. पवन ने बताया कि इस किस्म के सिर्फ दो सिंचाई और मध्यम खाद देने से ही बड़ीया पैदावार हो सकती है। यह किस्म किसानों को ज्यादा पैदावार मिलने का वादा करती है और इसका बीज उन्हें अगले दो वर्षों में उपलब्ध होगा।

उच्च पौष्टिकता और रोगरोधक गुण

इस नई किस्म में 11.3% प्रोटीन है और इसमें लोह तत्व (37.6 पीपीएम) और जिंक (37.8 पीपीएम) भी है। यह रोगों के प्रति सुरक्षात्मक गुणधर्मी भी है और उच्च पौष्टिकता के साथ आती है, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार हो सकता है। इसके साथ ही, अन्य किस्मों में सरसों की एच 1975, मूंग की एमएच 1762 व एमएच 1772, जई की एचएफओ 906 और मसूर की एलएच 17-19 भी जल्द ही अनुमोदित होने की संभावना है।

विज्ञानिकों की योगदान की महत्वपूर्णता

इस नई किस्म को विकसित करने में योगदान करने वाले वैज्ञानिकों की मेहनत का संकेत यह है कि कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए नए  तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। यह नई किस्म किसानों को सुरक्षित, पौष्टिक और उच्च पैदावार वाले उत्पादों तक पहुंचाने के लिए एक उचित और उनिक विकल्प प्रदान कर सकती है।

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