
हरियाणा में सियासी संकट गहरा गया है क्योंकि राज्य के राजभवन और विधानसभा को अभी तक तीन निर्दलीय विधायकों द्वारा भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने का औपचारिक लेटर प्राप्त नहीं हुआ है। यह लेटर सिर्फ राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को अनौपचारिक तरीके से भेजा गया था, जिसे राजभवन स्वीकार नहीं कर रहा है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि निर्दलीय विधायक रणधीर गोलन, धर्मपाल गोंदर और सोमवीर सांगवान ने जो ईमेल आईडी का इस्तेमाल किया वह उनकी आधिकारिक ईमेल आईडी नहीं थी। राजभवन सूत्रों के अनुसार, चूंकि लेटर विधायकों की औपचारिक ईमेल आईडी से नहीं आया था, इसलिए इस पर विचार नहीं किया गया। इसके अलावा, लेटर की विश्वसनीयता भी संदेह के घेरे में थी। निर्दलीय विधायकों ने 7 मई को रोहतक में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान के साथ संयुक्त प्रेसवार्ता कर भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की थी। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल को एक संयुक्त पत्र भेजा था। एक विधायक ने बताया कि यह पत्र 7 मई की शाम को ही ईमेल के जरिए भेजा गया था, लेकिन अभी तक राजभवन नहीं पहुंचा है।
हरियाणा राजभवन के एक अधिकारी ने बताया कि अब विधायकों को या तो गवर्नर के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा या अपनी आधिकारिक ईमेल आईडी से संयुक्त पत्र भेजना होगा। राजभवन में निजी व्यक्तियों या पार्टियों की आईडी से भेजे गए ऐसे लेटर पर विचार नहीं किया जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि राजभवन केवल विधायकों से सीधे प्राप्त होने पर ही इस पत्र पर कार्रवाई करेगा। इस बीच, हरियाणा विधानसभा के सूत्रों ने भी बताया कि उन्हें विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने की कोई सूचना नहीं मिली है। वे कहते हैं कि जब राजभवन को लेटर प्राप्त होगा, तभी उसे विधानसभा को भेजा जाएगा। उन्हें यह भी सत्यापित करना होगा कि आखिर पत्र प्रामाणिक है या नहीं और इसे दबाव में लिखा गया है या नहीं।
अभी हरियाणा राजभवन के रिकॉर्ड में निर्दलीय विधायकों का भाजपा सरकार के समर्थन वाला पत्र ही दर्ज है। अधिकारियों के मुताबिक, जब तक नया पत्र नहीं आता, पुराना ही कायम रहेगा। इसलिए फिलहाल भाजपा को 6 निर्दलीय विधायकों में से 5 का समर्थन प्राप्त है।
इस पूरे मामले में अंतिम फैसला हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ही लेंगे जो इन दिनों हरियाणा से बाहर हैं। वे 15 मई को लौटने की उम्मीद है। विपक्षी दल इसी आधार पर फ्लोर टेस्ट और राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं कि भाजपा सरकार अब बहुमत खो चुकी है। लेकिन राजभवन कानूनी औपचारिकताओं के चलते अभी कोई कदम नहीं उठा रहा है।
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