इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) इस बार चौधरी देवीलाल की जयंती रोहतक में मनाने जा रहा है। यह पहला मौका होगा जब पार्टी संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के निधन के बाद यह आयोजन होगा। अब तक हर अवसर पर देवीलाल जयंती में ओमप्रकाश चौटाला बतौर मुख्य वक्ता मौजूद रहते थे, लेकिन इस बार पूरे आयोजन की कमान उनके छोटे बेटे और अभय चौटाला के हाथ में होगी। अभय चौटाला का पूरा ध्यान इस बार जाटलैंड पर है। रोहतक और आसपास के इलाके में वे सीधे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ में राजनीतिक चुनौती देने जा रहे हैं। यही वजह है कि वे हुड्डा खेमे से जुड़े कई कार्यकर्ताओं को लगातार इनेलो में शामिल करवा रहे हैं।
देवीलाल परिवार एक बार फिर रोहतक में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा
यहां तक कि कभी ओमप्रकाश चौटाला के बेहद करीबी रहे पूर्व गृह मंत्री संपत सिंह के भी मंच पर देवीलाल को श्रद्धासुमन अर्पित करने की चर्चाएं हैं। फिलहाल हरियाणा विधानसभा में इनेलो के दो विधायक हैं अभय चौटाला के पुत्र अर्जुन चौटाला और उनके चचेरे भाई आदित्य चौटाला। माना जा रहा है कि अभय पार्टी को नए सिरे से उभारने की रणनीति में लगे हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि देवीलाल परिवार एक बार फिर रोहतक में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है। गौरतलब है कि रोहतक, सोनीपत और झज्जर कभी देवीलाल परिवार का गढ़ माने जाते थे। हालांकि खुद देवीलाल रोहतक से दो बार लोकसभा चुनाव भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों हार गए थे, लेकिन तब भी इस क्षेत्र में उनकी पकड़ बरकरार रही। हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद धीरे-धीरे देवीलाल परिवार का वर्चस्व कमजोर हुआ।
इस बार की जयंती में ये राष्ट्रीय नेता मंच पर नहीं दिखाई देंगे
अब अभय चौटाला उसी खोए हुए जनाधार को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। देवीलाल भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री रहे हैं और उनकी जयंती पर आयोजित रैलियां हमेशा राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु बनी रहती थीं। बीते आयोजनों में मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू और फारूक अब्दुल्ला जैसे दिग्गज नेता मंच साझा करते रहे हैं। लेकिन इस बार की जयंती में ये राष्ट्रीय नेता मंच पर नहीं दिखाई देंगे। इनेलो का पूरा जोर इस बार हरियाणा की राजनीति पर फोकस रखने और स्थानीय कार्यकर्ताओं को एकजुट करने पर है। इसी समीकरण को ध्यान में रखकर अभय चौटाला ने पार्टी को नए सिरे से संवारने का निर्णय लिया है। खासकर इसलिए भी क्योंकि जेजेपी, जो उनके बड़े भाई अजय चौटाला की पार्टी है, पहले ही हाशिये पर जा चुकी है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेजेपी के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी।
अभय चौटाला की छवि जुझारू और वर्करों के हितैषी नेता की मानी जाती
यहां तक कि पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी अपने हल्के में से दस हजार वोटों का आंकड़ा भी नहीं छू पाए थे। अभय चौटाला की छवि जुझारू और वर्करों के हितैषी नेता की मानी जाती है। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब वे कोई जिम्मेदारी लेते हैं, तो उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यही कारण है कि इस बार पूरे राज्य के इनेलो कार्यकर्ता रोहतक में जुटकर इस आयोजन को बड़ी राजनीतिक रैली में बदलने की तैयारी कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जाटलैंड में हुड्डा परिवार का जनाधार अब धीरे-धीरे खिसक रहा है। इसका उदाहरण 2024 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिला था। खरखौदा जैसी परंपरागत सीट के अलावा गोहाना और सोनीपत जैसे क्षेत्रों में भाजपा को जीत मिली, जबकि गन्नौर में निर्दलीय उम्मीदवार सफल रहा।
समीकरण को ध्यान में रखकर अभय चौटाला ने पार्टी को नए सिरे से संवारने का निर्णय लिया
यह साफ संकेत है कि हुड्डा परिवार का दबदबा उनके अपने गढ़ में भी कमजोर पड़ा है। इसी समीकरण को ध्यान में रखकर अभय चौटाला ने पार्टी को नए सिरे से संवारने का निर्णय लिया है। खासकर इसलिए भी क्योंकि जेजेपी, जो उनके बड़े भाई अजय चौटाला की पार्टी है, पहले ही हाशिये पर जा चुकी है। पिछले विधानसभा चुनाव में जेजेपी के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी। यहां तक कि पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी अपने हल्के में से दस हजार वोटों का आंकड़ा भी नहीं छू पाए थे।
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