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The Haryana Story | वसीयत सत्यापन में मिली 'बड़ी' अनियमितताएं, हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने अपनाया 'कड़ा' रुख, दोषी अधिकारियों की 'खैर' नहीं

वसीयत सत्यापन में मिली 'बड़ी' अनियमितताएं, हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने अपनाया 'कड़ा' रुख, दोषी अधिकारियों की 'खैर' नहीं

आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए निर्देश दिए हैं कि वे सहायक जिला अटॉर्नी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करें

प्रतीकात्मक तस्वीर

हरियाणा के करनाल स्थित एस्टेट ऑफिस में पंजीकृत वसीयतों के सत्यापन की प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताओं और पक्षपातपूर्ण आचरण का मामला सामने आया है, जिसको लेकर हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए नगर एवं ग्राम आयोजना विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं कि वे सहायक जिला अटॉर्नी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करें और आदेश प्राप्त होने की तिथि से 30 दिनों के भीतर इस संबंध में की गई कार्रवाई की सूचना आयोग को दें।

राशि दोषी अधिकारियों से वसूल की जाएगी

 इसके अतिरिक्त, आयोग ने हरियाणा सेवा का अधिकार अधिनियम, 2014 की धारा 17(1)(एच) के अंतर्गत कार्यवाही करते हुए अपीलकर्ता को लगातार परेशान किए जाने को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए शिकायतकर्ता सतीश कुमार अग्रवाल को 5 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह मुआवजा हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण अपने फंड से प्रदान करेगा और बाद में यह राशि दोषी अधिकारियों से वसूल की जाएगी।

चुनिंदा आवेदकों को टारगेट बनाकर उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान किया गया 

बता दें कि आयोग ने उक्त मामले में सहायक जिला अटॉर्नी अवतार सिंह सैनी की भूमिका को असंगत और जवाबदेही से परे पाया है। इस संबंध में आयोग के प्रवक्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि अनियमितताओं के संबंध में जांच से यह स्पष्ट हुआ कि सत्यापन प्रक्रिया में एकरूपता का पालन नहीं किया गया है, बल्कि चुनिंदा आवेदकों को टारगेट बनाकर उन्हें अनावश्यक रूप से परेशान किया गया। वहीं रिकॉर्ड की समीक्षा में यह भी पाया गया कि अधिकांश फाइलों में की गई टिप्पणियां लगभग एक जैसी थीं और यह कहना कठिन है कि वास्तव में सत्यापन की प्रक्रिया संपन्न हुई थी या नहीं।

केवल किसी एक कर्मचारी की लापरवाही का नहीं, बल्कि...

गौरतलब है कि आयोग का यह भी मानना है कि यह मामला केवल किसी एक कर्मचारी की लापरवाही का नहीं, बल्कि एक संगठित और योजनाबद्ध उत्पीड़न को दशार्ता है, जिसमें सहायकों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। सहायक जिला अटॉर्नी द्वारा अपनी भूमिका से बचने के लिए दिए गए विभिन्न तर्कों को आयोग ने सिरे से खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि भले ही उनकी सिफारिशें निर्णायक न हों, परंतु इससे वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते।

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